September 8, 2024

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9 वर्षों बाद बिछड़ी बेटी जब आई सामने तो थम गई मां की जुबान, सोचने लगी कही सपना तो नही

 

9 वर्षों बाद बिछड़ी बेटी जब आई सामने तो थम गई मां की जुबान, सोचने लगी कही सपना तो नही

         भोपाल। सब उसे एकटक निहार रहे थे। करीब जाने से भी ठिठक रहे थे, सोच रहे थे कहीं सपना तो नहीं, जो उसे छूते ही बिखर जाएगा। जुबान खामोश थी पर खुशियों की चाशनी में लिपटी ममता आंसुओं के सहारे ऐसे बह रही थी मानों बरसों से जमी थी। मां कभी उसके माथे को चूमती तो कभी आंचल से लगाती। पिता उसके सिर पर हाथ फेरता और भाई उससे लिपट जाता। मिलन की इस घड़ी में किसी के पास कुछ कहने को न था। भावनाओं से भरा यह माहौल बाल कल्याण समिति के दफ्तर का था। जब नौ वर्ष पहले बिछड़ी बेटी 17 वर्ष की उम्र में अपने मां-बाप-भाई के सामने थी। इस नजारे को देखकर यहां हर व्यक्ति खुद को भावुक होने से रोक नहीं पाया, यहां एक 17 वर्षीय बेटी नौ साल बाद अपने परिवार से मिल रही थी। जब वह अपने परिवार से बिछड़ी थी तो वह आठसाल की थी। इस कारण परिवार की आंखों में उसकी धुंधली तस्वीर रह गई थी। अब उनकी छोटी सी बेटी बड़ी हो गई थी।
       नौ साल पहले वह गलती से राजस्थान के उदयपुर पहुंच गई थी जहां बालिका गृह में रह रही थी। माता-पिता ने उदयपुरव भोपाल बाल कल्याण समिति और चाइल्ड लाइन के प्रयासों से अब जाकर उसे ढूंढ लिया गया। माता-पिता, भाई, नाना-नानी और ताई सहित पूरा परिवार बेटी को लेेने के लिए पहुंचा था। समिति ने बताया कि बालिका के माता-पिता पहले भोपाल में रहकर काम करते थे। दादी से नाराज होकर वह अपने गांव से भोपाल आने के लिए निकल गई थी और वह गलत ट्रेन में बैठ गई थी। इस बीच उसने कई जगह ट्रेन बदली। राजस्थान के एक शहर से उसे एक व्यक्ति अपने घर ले गया और घर पर काम कराने लगा। बच्ची वहां से भाग निकली और पुलिस की नजर उस पर पड़ी। उसके बाद उदयपुर समिति के संरक्षण में बच्ची को भेजा गया।
     रेलवे चाइल्ड लाइन समन्वयक संजीव जोशी ने बताया कि उन्हें बाल कल्याण समिति सदस्य ब्रिज त्रिपाठी ने किशोरी के संबंध में जानकारी दी। काउंसलिंग में किशोरी ने गांव का नाम परासिया बताया। जब जानकारी इक-ा की गई तो छिंदवाड़ा के परासिया थानेमें किशोरी की गुमशुदगी की रिपेार्ट दर्ज होने की पुष्टि हो गई। पांच घंटे के अंदर ही बालिका के परिवार से संपर्क हो गया। बालिका का पिता करीब सात साल से छिंदवाड़ा स्थित अपने गांव में एक मंदिर के बाहर फूलों की दुकान लगाता था। मंदिर में चढ़ाने के लिए किसी को फूल देता तो उससे बेटी को मिलाने के लिए भवान से प्रार्थना करने की विनती जरूर करता था। वह खुद भी सुबह-शाम भगवान को इस मिन्नत के साथ माला चढ़ाता था कि बेटी से मिला दो। अब जब बेटीकी जानकारी मिली तो उसकी खुशी का ठिकाना नहीं है। आंखों से आंसू बह निकले।  

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