वाल्मीकिनगर। भारत-नेपाल सीमा पर अवस्थित बेलवा घाट परिसर में शरद पूर्णिमा के अवसर पर 94 वीं नारायणी गंडकी महाआरती कार्यक्रम का आयोजन किया गया। अंतरराष्ट्रीय न्यास स्वरांजलि सेवा संस्थान द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम का शुभारंभ आचार्य पंडित अखिलेश्वर पांडे जी महाराज, लोकप्रिय कलाकार डी.आनंद, समाजसेवी संगीत आनंद, पंडित उदयभानु चतुर्वेदी ,स्वरांजलि सेवा संस्थान ट्रस्ट की राष्ट्रीय अध्यक्षा अंजू देवी, गायिका भारती कुमारी, एवं नायिका कुमारी संगीता ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्वलित करके किया ।
मुख्य अतिथि आचार्य अखिलेश्वर ने शरद पूर्णिमा के महत्व को बताते हुए कहा कि शरद पूर्णिमा को वाल्मीकि जयंती के रूप में भी मनाते हैं। आदि कवि महर्षि वाल्मीकि ने वाल्मीकि रामायण की रचना की थी। शरद पूर्णिमा की रात में कथा, पूजा, भजन, कीर्तन से जीवन धन्य हो जाता है। आज की साधना सिद्धि प्रदान करती है। श्री डी. आनंद ने कहा कि जीवन को परम आनंद प्रदान करती है नारायणी गंडकी महाआरती और मोक्ष की प्राप्ति होती है। पंडित चतुर्वेदी ने आश्विन पूर्णिमा के महत्व को कथा के माध्यम से प्रस्तुत किया।
संस्था के एम.डी संगीत आनंद ने कहा कि हर महीने की पूर्णिमा तिथि को पर्यावरण संरक्षण संवर्धन , प्राकृतिक धरोहरों की रक्षा एवं वाल्मीकि धाम पर्यटन को अंतर्राष्ट्रीय मानचित्र पर लाने हेतु इस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। विशिष्ट अतिथियों के आगमन और महत्वपूर्ण दिवस को विशेष महा आरती की परंपरा का निर्वाह किया जाता है। संगीत आनंद ने भजनों के माध्यम से नारायणी गंडकी के महत्व को बताया। गायिका भारती कुमारी ने भजनों द्वारा सूर्य षष्ठी व्रत की महिमा को मधुर अंदाज में प्रस्तुत किया। कुमारी संगीता एवं कुमारी चांदनी की युगल प्रस्तुति सराहनीय रही।
इस मौके पर शिक्षक राजेश कुमार शर्मा, सीताराम शर्मा, हिरमाती देवी, मुस्कान कुमारी, सिंधु देवी समेत कई गणमान्य व्यक्ति मौजूद थे। मंच संचालन डी.आनंद ने किया जबकि धन्यवाद ज्ञापन संगीत आनंद ने किया। राव एम .आर .आई. सेंटर गोरखपुर के सौजन्य से अंगवस्त्रम द्वारा अतिथि गण सम्मानित किए गए। यादव जी डेरी ने महाप्रसाद का इंतजाम किया। सूर्यास्त के पश्चात पावन बेला में नारायणी गंडकी माता की महा आरती की गई। गंगा मैया की जय , गंडकी माता की जय, वाल्मीकि धाम की जय आदि नारों से महा आरती स्थल गूंजायमान हो उठा। संतों के प्रवचन ,भक्तों के भजन, शंख, झाल,और करताल की मधुर ध्वनि ने शरद पूर्णिमा और बाल्मीकि जयंती को यादगार बना दिया।
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