नई दिल्ली। नौ राज्यों में हिंदुओं को अल्पसंख्यक का दर्जा देने वाला याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि इस मामले में ऐसे ठोस उदाहरण रखे जाएं जिनमें कम आबादी होने के बावजूद हिंदुओं को अल्पसंख्यकों को अधिकार ना दिए गए हों। याचिका में कहा गया था कि बिना राज्य स्तर पर हिंदुओं की संख्या का निर्धारण किए केवल पांच समुदायों को ही अल्पसंख्यकों का दर्जा दिया जाता है।
धर्मगुरु देवकीनंदन ठाकुर की याचिका पर जस्टिस यूयू ललित, एस रवींद्र भट और सुधांशु धूलिया की बेंच ने कहा, ऐसे ठोस उदाहरण हमारे सामने रखे जाएं जहां हिंदू अल्पसंख्यक हों लेकिन उनको अधिकार न मिले हों। याचिकाकर्ता ने नेशनल कमिशन फॉर माइनॉरिटी ऐक्ट 1992 और एनसीएम एजुकेशनल ऐक्ट 2004 को चुनौती दी है और कहा है कि अल्पसंख्यों के अधिकार केवल ईसाई, मुस्लिम, सिख, बौद्ध, पारसी और जैन तक सीमित हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई दो सप्ताह के लिए टाल दी है। कोर्ट ने कहा, अगर किसी को अधिकार देने से मना किया गया हो तभी हम इसपर गौर कर सकते हैं। क्या किसी संस्थान में ऐडमिशन लेने से इनकार किया गया है? आप सीधा कानून को चुनौती दे रहे हैं। जब कोर्ट के सामने कोई ठोस उदाहरण पेश किया जाएगा तो उसके आधार पर सुनवाई आगे बढ़ेगी।
देवकीनंदन ठाकुर की तरफ से पेश हुए वकील अरविंद दातार ने कोर्ट जवाब देने के लिए समय मांगा है। उन्होंने कहा, सारी समस्या हिंदुओं के अल्पसंख्यक का दर्जा देने में नजर आती है। मुझे पता है कि कोर्ट को ऐसे उदाहरण की जरूरत है। उन्होंने कहा कि 1993 की एक अधिसूचना कहती है कि मुस्लिम, ईसाई, सिख, बौद्ध और पारसी राष्ट्रीय स्तर पर अल्पसंख्यक हैं। वहीं कोर्ट के फैसले में कहा गया है कि अल्पसंख्यकों को राज्य द्वारा अधिसूचित किया जाएगा। इसका मतलब ऐसा माना जा रहा है कि हिंदू अल्पसंख्यक नहीं हो सकते।
बेंच ने दातार से कहा, हम भाषायी और धर्म के स्तर पर अल्पसंख्यक की बात कर रहे हैं। कोई भी शख्स अल्पसंख्यक हो सकता है।
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