गोरखपुर। पचपेड़वा चक्शा हुसैन गोरखनाथ में जश्न-ए-आमदे रसूल जलसा हुआ। संचालन हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी ने किया। नात-ए-पाक मोहम्मद अफरोज क़ादरी व शादाब अहमद रज़वी ने पढ़ी।
मुख्य अतिथि नायब काजी मुफ़्ती मोहम्मद अज़हर शम्सी ने कहा कि अल्लाह ने दुनिया में कमोबेश सवा लाख पैग़ंबरों को भेजा, लेकिन मेराज शरीफ में सिर्फ आख़िरी पैग़ंबर हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ही अल्लाह से मुलाकात हुई। पैग़ंबर-ए-आज़म ने मस्जिद-ए-अक्सा में पैग़ंबरों व फरिश्तों की इमामत की। उस मुबारक रात में अहकामे खास पैग़ंबर-ए-आज़म पर नाज़िल हुए और आप दीदारे खुदावंदी से सरफराज़ हुए। तोहफे में नमाज़ मिली। पचास वक्त की नमाज़ें अता हुई, लेकिन बाद में अल्लाह ने अपने करम से पांच वक्त की नमाज़ फर्ज की और यह वादा किया कि जो कोई मुसलमान पांच वक्त की नमाज़ पढ़ेगा, उसे पचास वक्त की नमाज़ का सवाब अता किया जाएगा। नमाज़ मोमिन की मेराज है। मुसलमान अगर तरक्की चाहते हैं तो नमाज़ को कायम करें। हमें चाहिए कि अल्लाह और पैगंबर-ए-आज़म की तालीमात पर पूरी बेदारी के साथ अमल करें।
अध्यक्षता करते हुए मौलाना इम्तियाज़ अहमद ने कहा कि पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की राह पर चलकर ही ज़िदंगी व आख़िरत को कामयाब बनाया जा सकता है। दीन-ए-इस्लाम इंसान के लिए नेमत है। दीन-ए-इस्लाम के रास्ते पर चलने वाला इंसान किसी का हक नहीं मारता है। इल्म के बिना किसी मसले की गहराई और उसका हल नहीं तलाशा जा सकता है। गरीबी इंसान की सबसे बड़ी दुश्मन है, लेकिन पढ़ा-लिखा इंसान कभी गरीब नहीं होता है। दीन-ए-इस्लाम में दीनी तालीम बेहद जरूरी है। अगर हमें अपनी कौम को उन्नति के मार्ग पर ले जाना है तो इसके लिए जरूरी है कि नई नस्ल को पैग़ंबर-ए-आज़म, सहाबा और अहले बैत की पाक ज़िदंगी से अवगत कराया जाए।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर मुल्क में अमनो अमान की दुआ मांगी गई। मोहम्मद आदिल गुड्डू ने शीरीनी बांटी।


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