November 22, 2024

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Vidhan Sabha Chunav करीब आते ही वर्चस्व व संघर्ष की जंग शुरू

 

            देहरादून। विधानसभा चुनाव ( Vidhan Sabha Chunav ) करीब आते देख वर्चस्व की जंग और एक दूसरे के इलाके में दखल से सत्तारूढ़ दल में प्रत्यक्ष रूप से संघर्ष शुरू हो गया है। ताजा मामला रायपुर के विधायक उमेश शर्मा काऊ से जुड़ा है , जिन्हें पूर्व मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा का करीबी माना जाता है। बहुगुणा के साथ ही काऊ कांग्रेस को छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे। हालांकि हालिया घटनाक्रम में उमेश की पैरवी में अभी तक बहुगुणा तो नहीं, लेकिन हरक सिंह रावत जरूर कूद पड़े हैं। असल में छह वर्ष पूर्व उत्तराखण्ड में जिस तरह दल बदल की राजनीति की शुरुआत हुई उसकी अंदरूनी कश्मकश और वर्चस्व की जंग के प्रभाव अब बाहर खुलकर दिखाई देने लगे हैं।
             कुछ भाजपाई विधानसभा चुनाव ( Vidhan Sabha Chunav ) के लिहाज से मुफीद सीटों पर गैर भाजपाई गोत्र के विधायकों को सहन नहीं कर पा रहे हैं। कांग्रेस से भाजपा में गए काबीना मंत्री डॉक्टर हरक सिंह व कर्मकार बोर्ड के अध्यक्ष सतेंद्र सत्याल का विवाद किसी से छिपा नहीं है। अब नया विवाद रायपुर विधानसभा क्षेत्र में पैदा हो गया है। रायपुर के विधायक उमेश शर्मा काऊ ने पार्टी पदाधिकारियों पर उनके खिलाफ साजिश रचने का आरोप लगाया है। मामला इतना गंभीर हो चुका है कि डॉ हरक सिंह रावत भी उमेश शर्मा के पक्ष में आ गए हैं।
           काऊ का यह कहना कि उनकी आपत्ति पर यदि भाजपा हाईकमान ने संज्ञान नहीं लिया था उनके पास बाहर भी संगठन है। उनके इस बयान के निहितार्थ निकाले जा रहे हैं कि मामला काफी गंभीर है और भाजपा संगठन से इतर भी फैसला लिया जा सकता है। जिन राजनीतिक प्रतिनिधियों को एग्रेसिव पॉलिटिशियन के नाम से जाना जाता है उनमें उमेश शर्मा काऊ भी एक माने जाते हैं। उनके बारे में कहा जाता है कि वह अपने क्षेत्र में होने वाले कामकाज में किसी भी प्रकार का कोई दखल नहीं चाहते।

               ऐसा नहीं कि इस तरह का विवाद पहली बार देखा जा रहा है। नारायण दत्त तिवारी सरकार में भी लक्ष्मण चौक विधानसभा जो अब धर्मपुर के नाम से है , के तत्कालीन विधायक व पूर्व मंत्री दिनेश अग्रवाल ने ऊर्जा राज्य मंत्री अमृता रावत के कार्यक्रमों का खुला विरोध किया था। उस समय भी राज्य मंत्री के कई कार्यक्रम ऐसे होते थे जिसकी जानकारी विधायक को नहीं होती थी, या आयोजकों द्वारा नहीं दी जाती थी।
               ऐसे विवाद को सुलझाने के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी के निर्देश पर व्यवस्था दी गई कि विधानसभा क्षेत्र में आयोजित होने वाले कार्यक्रम की अध्यक्षता क्षेत्रीय विधायक करेंगे। वह व्यवस्था अभी भी चली आ रही है। बताया जाता है कि उमेश शर्मा से जुड़े मामले में नाराजगी की वजह एक और भी है। सत्तारूढ़ दल के कुछ चेहरे अगला विधानसभा चुनाव रायपुर से लडऩा चाहते हैं।
           चूंकि देहरादून जिले की जिन सीटों को भाजपा अपने लिए सबसे मुफीद मानती है , उनमें रायपुर भी एक है। इनमें ऐसे चेहरों की चर्चा है जिनकी उनकी मौजूदा विधानसभा सीट से जीत की संभावना कम है। इसलिए वे पहाड़ से मैदान में उतरना चाहते हैं। कालांतर में एक नहीं कई उदाहरण ऐसे देखे जा सकते हैं जब पर्वतीय क्षेत्रों से विधायकों ने मैदानी जनपदों से चुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की। मल्टी डेमोग्राफी की वजह से मैदानी क्षेत्र की विधानसभाएं पर्वतीय जनपदों की विधानसभा सीटों की तुलना में सुविधाजनक मानी जाती हैं।
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