भोपाल। उत्तर प्रदेश और अन्य चार राज्यों के चुनाव के बाद भाजपा का राष्ट्रीय नेतृत्व असंतुष्ट गतिविधियों को लेकर कड़े संदेश देगा। सूत्रों के अनुसार इस संबंध में मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान और प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा को फ्री हैंड मिल सकता है। इस जोड़ी के कामकाज से भाजपा नेतृत्व पूरी तरह संतुष्ट है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान आलाकमान से मिले अधिकारों का उपयोग मंत्रिमण्डल फेरबदल में कर सकते हैं। कम से कम तीन कैबिनेट मंत्री मुख्यमंत्री के निशाने पर हैं जिन की कार्यशैली विवादास्पद है।
इसी तरह प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा संगठन के भीतर चल रही असंतुष्ट गतिविधियों को लेकर कड़ा कदम उठा सकते हैं। सांसद केपी यादव प्रकरण के बाद मुख्यमंत्री ने इस संबंध में फीडबैक लिया तो पता चला िक गुना और शिवपुरी जिला प्रशासन ने सांसद को बुलाने के संबंध में प्रोटोकॉल् का पालन किया है। इसलिए केपी यादव की जिला प्रशासन के प्रति शिकायत बेबुनियाद है। सिंधिया समर्थकों और केपी यादव के बीच चल रहे विवाद के बारे में एक वरिष्ठ भाजपा नेता का मानना है कि दोनों तरफ से हरकतें हो रही हैं। केपी यादव के समर्थक भी सिंधिया समर्थकों को तवज्जो नहीं देते बदले में सिंधिया समर्थक भी सइी तरह की प्रतिक्रिया देते हैं। बयान बाजी दोनों तरफ से हो रही है इसलिए केपी यादव की शिकायत को लेकर आलाकमान अधिक गंभीर नहीं है। इसके विपरीत उनके द्वारा पत्र को सार्वजनिक किए जाने से जरूर नाराजगी है। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष विष्णु दत्त शर्मा उनसे इस बारे में चर्चा कर सकते हैं। पार्टी की एक ओर समस्या उमा भारती का कथित शराबबंद विरोधी आंदोलन और विधायक नारायण त्रिपाठी की पृथक विंध्य की मांग है। इन दोनों से पहले चर्चा की जाएगी इसके बाद ही कड़े कदम उठाए जाऐंगे। साध्वी उमा भारती के आंदेलान के बारे में कहा जा रहा है कि ऐसा केएन गोविंदाचार्य की सलाह पर किया जा रहा है।
उमा भारती का मानना है कि शराबबंद के मुद्दे पर उन्हें भाजपा को महिला सदस्यों और राष्ट्र सेविका समिति का समर्थन मिल सकता है। जबकि संघ के अनेक पदाधिकारी उमा भारती के रवैए से नाराज हैं। इस संबंध में संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी रहे प्रचारक से चर्चा हुई तो उनका कहना था कि जब साध्वी को 2018 में झांसी से टिकट दिया और वे जीती थी तो उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहना था। केंद्रीय मंत्री के तौर पर उन्होंने काम करके दिखाया था, लेकिन साध्वी के पलायन वादी रवैये और अस्थिर मानसिकता के कारण उन्होंने मंत्रिमण्डल से इस्तीफा दे दिया और लोकसभा चुनाव नहीं लडऩे की घोषणा की। ऐसे में अपेक्षा थी कि वे धार्मिक और सामाजिक कार्यों में अधिक सक्रिय रहकर बड़े फलक पर खुद को स्थापित करती लेकिन उमा भारती की इच्छा मध्यप्रदेश में सक्रिय रहने की है। जबकि नरेंद्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी उन्हें प्रदेश की राजनीति में सक्रिय होते नहीं देखना चाहती।
दूसरी बात यह है कि उमा भारती ने अपने शराबबंदी आंदोलन की शुरुआत गैर भाजपा शासित राज्य से करनी चाहिए थी। पंजाब में अवैध शराब और तस्करी से आने वाले नशे की सामग्री को लेकर बड़ा मुद्दा है। देश में औसतन 17 फीसी युवा नशा करते हैं जबकि पंजाब में यह प्रतिशत दुगना है। ऐसे में उमा भारती को अपने आंदोलन की शुरुआत कांग्रेस शासित पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़़ से करनी चाहिए थी। लेकिन मध्य प्रदेश में शराब बंदी के आंदोलन की घोषणा कर उन्होंने बता दिया कि वे दरअसल शराबबंदी के बहाने भाजपा नेतृत्व को घेरना चाहती हैं। उनका मकसद राजनीतिक दबव बनाना है। इस संबंध में एक भाजपा नेता का कहना है कि नशाबंदी वाले गुजरात और बिहार की समीक्षा करने के बाद ही उमा भारती को आंदोलन करना चाहिए। उमा भारती का प्रमुख तर्क है कि शराब के कारण घरेलू हिंसा और अपराध पढ़ते हें। इस संबंध में उन्होंने बिहार और गुजरात के क्राइम रेट का अध्ययन करना चाहिए।
विशेषज्ञों ने भी माना है कि दोनों राज्यों में शराबबंदी विफल रही है। गुजरात में गांधी जी का जन्म हुआ है इस कारण से वहां शराबंदी हटाना संभव नहीं है लेकिन बिहार में नितीश कुमार की सरकार गहरे दबाव में है। शराबबंदी के कारण जो लख्य तय किए गए थे वे पूरे नहीं हुए बल्कि राजस्व का घाटा हो रहा है। कोरोना के कारण वैसे भी दो वर्षों से मध्य प्रदेश के राजस्व में कमी है। ऐसे में शराबबंदी करना किसी भी सरकार के लिए संभव नहीं है। उमा भारती हालांकि बेहद प्रतिभाशाली और तेजतर्रार नेता हैं। कम्युनिकेशन की उनकी स्किल भाजपा में उन्हें बहुत आगे करती है। भाजपा में दो-तन नेता ही उनसे इस मामले में आगे होंगे।
लेकिन यह भी सही है कि वे बेहद अस्थिर मानसिकता की नेता हैं। वे कब कौन सा बयान दे दें कोई अंदाजा नहीं लगा सकता। शराबबंदी के आंदोलन को छेडऩे के बाद कब वे इस आंदोलन को समाप्त कर दें इसका भी कोकई अंदाजा नहीं लगा सकता। ऐसे में कांग्रेस केवल उमा भारती का इसलिए समर्थन कर रही है कि क्योंकि इससे शिवराज सिंह चौहान की सरकार परेशान होगी। यदि कांग्रेस ने इस आंदोलन का समर्थन किया तो उसके लिए वह यूमरैंग की तरह होगा पंजाब, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में उसकी सरकारें हैं। इसलिए कमलनाथ उमा भारती का समर्थन करने से बच रहे हैं लेकिन अन्य नेता खासकर दिग्विजय सिंह इस मुद्दे पर साध्वी के साथ हैं। भाजपा भी चाहती है कि कांग्रेस इस मुद्दे पर उमा भारती का समर्थन करे जिससे वह कांग्रेस की करनी और कथनी के बारे में जनता को बता सके।
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