जयपुर। ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के पंजीकृत कार्यालय में आले नबी, हज़रत सय्यद मोहम्मद रफ़ीअ रज़वी, चिश्ती, क़ादरी के मुबारक हाथों से उलमा-ए-किराम/ सादाते किराम और फाउंडेशन के सदस्यों/ सहयोगियों की मौजूदगी में, ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के निकाह के रजिस्टर का लोकार्पण किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि हज़रत सय्यद मोहम्मद रफ़ीअ रज़वी, चिश्ती, क़ादरी ने कहा कि ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के इस इतिहासिक काम को देखकर मेरा दिल ख़ुशी से झूम उठा और मैंने फाउंडेशन के सभी सदस्यों/ सहयोगियों के लिए दिल से ढ़ेर सारी दुआएं किया। यूं तो फाउंडेशन ने नेकी के सभी कामों से पुरे देश के लोगों के दिलों को बहुत ही कम समय में जीता है लेकिन निकाह पढ़ाने वालों को फाउंडेशन ने रजिस्टर्ड़ क़ाज़ी बनाकर बहुत बड़ा काम किया है और निकाह से होने वाली आमदनी को फाउंडेशन के अनेकों उद्देश में लगाने का फैसला सुनाकर तो इतिहास रच दिया है जबकि दुसरी जगह निकाह से होने वाली आमदनी से अपना और अपने परिवार का पालन-पोषण किया जाता है।
ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के राष्ट्रीय अध्यक्ष हज़रत मौलाना मोहम्मद सैफुल्लाह ख़ां अस्दक़ी, अशरफ़ी, चिश्ती, क़ादरी ने कहा कि फाउंडेशन का रजिस्टर्ड़ क़ाज़ी बनकर, निकाह पढ़ाने के लिए कुछ शर्तों का पालन करना अनिवार्य है। जैसेः इस्लामी क़ानून व शरीअत के मुताबिक़ ही निकाह पढ़ाना होगा। ऐसा कोई निकाह नहीं पढ़ाना होगा जो इस्लाम और भारत के किसी क़ानून के ख़िलाफ़ हो। नाबालिग़ लड़के-लड़कियों, बदमज़हबों-बदअक़िदों का किसी भी सूरत में निकाह नहीं पढ़ाना होगा। अहले सुन्नत व जमाअत का ही निकाह पढ़ाना होगा।
अस्दक़ी ने बताया कि ग़ौसे आज़म फाउंडेशन का रजिस्टर्ड़ क़ाज़ी बनने के लिए, एक प्रार्थना पत्र, एक स्टाम्प, एक फोटो और आलिम/ मौलवी/ मुफ़्ती/ हाफ़िज़ या क़ारी वग़ैरा का सर्टिफिकेट पंजीकृत प्रधान कार्यालय में, जमा कराना होगा और उसे अहले सुन्नत व जमाअत का होना अनिवार्य होगा। उसके बाद ही उसे रजिस्टर्ड़ क़ाज़ी का नियुक्ति पत्र जारी किया जाएगा और निकाह पढ़ाने की इजाज़त दिया जाएगा।
इस ऐतिहासिक मौक़े पर ग़ौसे आज़म फाउंडेशन के डायरेक्टर मोहम्मद ख़ालिद सैफुल्लाह, क़ाज़ी मोहम्मद अयाज़ अहमद रज़वी, क़ाज़ी अबदुल हमीद रज़ा अज़हरी, क़ाज़ी अमानुर्रहमान रज़वी, क़ाज़ी मोहम्मद अनसार रज़ा अशरफ़ी, क़ाज़ी मोहम्मद उसमान रज़ा ज़ियाई, क़ाज़ी मुनतज़िम रज़ा अलीमी, राष्ट्रीय महासचिव मोहम्मद ओसामा सैफुल्लाह, शहादत अली और रज़ा मस्जिद के सदर, अबदुल वहीद के इलावा बड़ी संख्या में लोगों ने शिर्कत किया।
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