गोरखपुर। दुनिया की चार चीजें यानी पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम, दीन-ए-इस्लाम, क़ुरआन-ए-पाक और मुसलमान मशहूर और हक़ हैं। जिनका दुनिया अब तक जवाब पेश न कर सकी और यही चार मजलूम हैं। सारे नबियों और रसूलों में लाजवाब और बेमिसाल हमारे पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम हैं। जिन्हें लाजवाब और बेमिसाल दुनिया का जर्रा-जर्रा बोलता व मानता है। दीन-ए-इस्लाम ऐसा मजहब कि जिसका जवाब कोई मजहब न पेश कर सका। दीन-ए-इस्लाम वो जिसका मजहबों में कोई जवाब नहीं। श्क़ुरआनश् ऐसी मुक़द्दस किताब जिसका जवाब कोई राइटर तीस पारा तो अलग एक आयत का भी पेश न कर सका। क़ुरआन वो लाजवाब किताब है जिसका जवाब न कल था, न आज है, न रहती दुनिया तक कोई जवाब दे सकेगा। यह अल्लाह का कलाम है। सारी किताबें क़ुरआन की अज़मतों का खुतबा पढ़ती हैं और तीनों के मानने वाले लोग, मानने वाली कौम जिसका नाम मुसलमान है। सारी कौमों में इस कौम का कोई जवाब नहीं।
यह बातें बतौर मुख्य अतिथि मौलाना जहांगीर अहमद अज़ीज़ी ने मेवातीपुर निकट मक्का मस्जिद जलसा-ए-ग़ौसुलवरा में कही।
उन्होंने कहा कि उक्त चारों बेमिसाल व लाजवाब हैं और जब-जब दुनिया ने आंख उठाई है तो हमला या तो मुसलमान पर या तो दीन-ए-इस्लाम पर या क़ुरआन-ए-पाक पर या तो पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की अज़मतों पर किया है। अगर दुनिया इन चारों पर हमला करने के बजाए अपनाने के लिए बढ़ती तो दुनिया से शिर्क खत्म हो जाता और अमन फैल जाता। हम दुनिया के नजरिए को भी समझते हैं और अपने बारे में यह फख्र भी करते हैं कि हम गरीब हैं लेकिन गरीबी मयार का नाम नहीं है मयार का नाम ईमान हैं। ये सारी कौमें जो आंखें फोड़ कर हमें देख रही हैं। हम इनको कांटें बबूल कहते हैं और अपनी कौमी ज़िंदगी को गुलाब का फूल कहते हैं।
मिर्जापुर पचपेड़वा गोरखनाथ में हुए जलसा-ए-ग़ौसुलवरा में मौलाना हनीफ़ रज़ा ने कहा कि कायनात की हर चीज अल्लाह से डरती हैं। अल्लाह के वास्ते रोना सीख जाओ। रोना बहुत बड़ी नेमत है। सच्चे दिल से तौबा करो और अपनी आंखों से आंसू बहाओ। तो वो जो आंसुओं के चंद कतरे गिरेंगे नदामत के, वो इतने अज़ीम हैं कि अल्लाह के नज़दीक उन कतरों से ज्यादा कोई कतरा प्यारा नहीं है। दुनिया का पानी खेतियों को सैराब करता है तो बंदा-ए-मोमिन की आंखों से निकला हुआ पानी दिल की खेती को हरा-भरा करता है। अल्लाह के वास्ते अपने दिल की खेती को हरा-भरा करो। बंदा-ए-मोमिन का हर काम अल्लाह की रज़ा के लिए होना चाहिए।
क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत से जलसे का आगाज हुआ। नात-ए-पाक पेश की गई। अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुनिया में अमनो सलामती की दुआ मांगी गई।
जलसे में मौलाना इम्तियाज़ अहमद, हाफ़िज़ अज़ीम अहमद नूरी, कारी शाबान, कारी फरोग अख़्तर, कारी अंसारुल हक़ क़ादरी, तन्नू, तनवीर, आरिज़, फ़ुरकान, अमन, इरफ़ान, टोनी, नावेद, मौलाना गुलाम दस्तगीर, कारी शमसुद्दीन, मुफ़्ती मुनव्वर, सहित तमाम लोग मौजूद रहे।
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