गोरखपुर। ग़ौसे आज़म हज़रत सैयदना शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की याद में इलाहीबाग आगा मस्जिद के निकट, अस्करगंज, इस्माइलपुर व तुर्कमानपुर में जलसा-ए-ग़ौसुलवरा व लंगर-ए-ग़ौसिया का आयोजन हुआ। जलसा संयोजक हाजी मो. खुर्शीद आलम खान ने शहर के उलमा-ए-किराम को सम्मानित किया। क़ुरआन-ए-पाक की तिलावत कारी मो. मोहसिन रज़ा बरकाती ने की। नात व मनकबत कारी गुलाम रसूल ने पेश की।
तुर्कमानपुर के जलसे में मुफ़्ती मो. अज़हर शम्सी (नायब क़ाज़ी) ने कहा कि दीन-ए-इस्लाम लड़कियों को भी तालीम हासिल करने का अधिकार देता है। बेहतर तालीम की वजह से ही आज मुस्लिम समाज की लड़कियां विभिन्न ओहदों पर कार्यरत हैं। मुस्लिम लड़कियां समाज के विकास के लिए भी योगदान दे रही हैं। लड़कियां बेहतर तालीम से जुड़ सकें व समय के साथ समाजिक व्यवस्था को बेहतर बनाने में अपना योगदान दे सकें, इसके लिए पहल की जा रही है। दीन-ए-इस्लाम ने सबसे पहले औरतों को अधिकार दिए हैं। दीन-ए-इस्लाम में औरतों के स्वाभिमान की सुरक्षा सर्वाेपरि है।
इलाहीबाग के जलसे में मुख्य अतिथि घोसी (मऊ) के मुफ़्ती शमशाद अहमद मिस्बाही ने हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां की करामत बयान की। गुस्ताख़े रसूल वसीम रिज़वी का रद्द किया। मुस्लिम अवाम को जागरूक करते हुए कहा कि तालीम किसी भी समाज की रीढ़ होती है। कोई समाज तब तक तरक्की नहीं कर सकता जब तक कि वह तालीम हासिल नहीं करेगा। तालीम के साथ संस्कार भी हासिल करना जरूरी है। संस्कार के बिना तालीम व्यर्थ है। लड़कियों को तालीम के क्षेत्र में आगे बढ़ाना बेहद जरूरी है।
विशिष्ट अतिथि घोसी (मऊ) के मौलाना मो. आरिफ़ खान ने कहा कि औलिया किराम का फैज़ सभी पर है। औलिया किराम की ज़िदंगी हमारे लिए नमूना है। उस पर अमल करके अल्लाह और पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नज़दीक हासिल की जा सकती है। हज़रत शैख़ अब्दुल क़ादिर जीलानी अलैहिर्रहमां ने दीन-ए-इस्लाम को फैलाया, प्रचार-प्रसार किया। पूरी ज़िदंगी पैग़ंबर-ए-आज़म की पाकीज़ा सुन्नतों पर अमल कर कुर्बे इलाही हासिल किया। उनका पैग़ाम सभी के लिए है। दिल को अल्लाह के जिक्र से खाली नहीं रखना चाहिए। बगैर इल्म यानी इल्म-ए-दीन के विलायत नामुमकिन है।
इस्माइलपुर के जलसे में मौलाना फैजुल्लाह क़ादरी ने कहा कि इस्लामी क़ानून नैतिक विकास, न्याय, सामानता, कल्याण और संतुलन को बढ़ावा देता है इसमें स्वस्थ परिवार बनाने की क्षमता है जो समाज के अस्तित्व के लिए बुनियादी शर्त है। इस्लामी क़ानून औरतों के सम्मान की सुरक्षा करता है यह उनके अधिकारों को स्थापित करता है उनके लिए उनकी व्यापक स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है। शरीअत के उल्लघंन का मूल कारण मुसलमानों में बड़े पैमाने पर अज्ञानता और इस्लामी मानदंडों के प्रति गंभीर अप्रतिबद्धता है।
अस्करगंज के जलसे में मौलाना मोहम्मद अहमद निज़ामी ने कहा कि आज मुसलमान बहुत परेशान हैं। करीब 57 इस्लामिक मुल्क हैं। तेल सहित तमाम खज़ाने हैं लेकिन मुसलमान बर्बाद हो रहा है, ज़ुल्म का शिकार हो रहा हैं। इसकी वजह हमने उस अज़ीम मरकज़ से दूरी बना ली, जहां से हमें रौशनी मिली। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की ही वह एक वाहिद जात है जिस पर उम्मते मुस्लिमा एक हो सकती है और खोया हुआ वकार दुबारा पा सकती है। शरीअत के अनुसार दीन-ए-इस्लाम के नियम का पालन किया जाना चाहिए।
अंत में सलातो-सलाम पढ़कर मुल्को मिल्लत के लिए दुआ मांगी गई। लंगर-ए-ग़ौसिया में अकीदतमंदों ने बढ़चढ़ कर हिस्सा लिया।
जलसे में कारी अफ़ज़ल बरकाती, मो. शादाब खान, हाजी खुर्शीद आलम खान, मो. अयूब खान, हाजी जमील अहमद, इमरान अहमद, मुफ़्ती अख्तर हुसैन (मुफ़्ती-ए-शहर), हाफ़िज़ महमूद रज़ा, हाफ़िज़ आमिर हुसैन निज़ामी, हाफ़िज़ रज़ी, मौलाना इदरीस, मनोव्वर अहमद, एडवोकेट तौहीद अहमद, अलाउद्दीन निज़ामी, फैज़, इरफान खान, हाफ़िज़ फ़ुरकान, मिनहाज समानी, कारी नसीमुल्लाह, एडवोकेट शुएब अंसारी, रेयाज अहमद राइन, नवेद आलम, मो. आज़म, इकरार अहमद, हाजी कलीम फरजंद, सरफुद्दीन कुरैशी, खैरुल बशर, जलालुद्दीन क़ादरी, एडवोकेट मो. आज़म आदि मौजूद रहे।
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