गोरखपुर। महफिल-ए-मिलादुन्नबी पर बहादुरिया जामा मस्जिद रहमतनगर में मौलाना अली अहमद ने कहा कि मुसलमानों को अल्लाह की तरफ से जो भी सौग़ात मिली है, वह पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम के सदके में ही मिली है। पैग़ंबर-ए-आज़म अल्लाह का नूर व आख़िरी पैगंबर हैं। पैग़ंबर-ए-आज़म को अल्लाह ने अपने नूर से पैदा फरमाया और पैग़ंबर-ए-आज़म के नूर से कायनात को बनाया। पैग़ंबर-ए-आज़म पर इंसान, जिन्न, फरिश्ते दरूदो-सलाम भेजते हैं। मुसलमानों के लिए रबीउल अव्वल शरीफ का महीना बहुत अहम है। इस महीने की 12 तारीख़ पैग़ंबर-ए-आज़म की पैदाइश का दिन है।
उन्होंने कहा कि जब-जब दुनिया में बुराईयां बढ़ती है तब-तब अल्लाह इंसानों की रहनुमाई के लिए नबी व रसूल (पैग़ंबर) भेजता है। पैग़ंबर-ए-आज़म हज़रत मोहम्मद सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने ऐसे जमाने में जन्म लिया, जब अरब के हालात बहुत खराब थे। बच्चियों को ज़िन्दा दफ़्न कर दिया जाता था। विधवाओं से बुरा सुलूक होता था। छोटी-छोटी बात पर तलवारें खिंच जाती जाती थीं। इंसानियत शर्मसार हो रही थी। ऐसे समय में इंसानों की रहनुमाई के लिए अरब के मक्का शहर में पैग़ंबर-ए-आज़म का जन्म हुआ। पैग़ंबर-ए-आज़म ने जब सच्ची तालीमात आम करनी शुरु कि तो उस दौर के मक्का में रहने वालों को काफी बुरा लगा। आपको तरह-तरह की तकलीफें दी गईं। जिसका आपने डट कर सामना किया। आपको मक्का से हिजरत करने पर मजबूर किया गया। आपने मदीना शरीफ में ठहराव पसंद किया। इतनी परेशानियों के बाद आपने मिशन को नहीं छोड़ा। आपने मजलूमों, गुलामों, औरतों, बेसहारा, यतीमों को उनका हक दिलाया।
अंत में सलातो सलाम पढ़कर दुआ मांगी गई। शीरीनी बांटी गई। महफिल में अली गज़नफर शाह अज़हरी, सैयद रफीक हसन, मो. ज़ैद, मो. फैज़, मो. आसिफ, मो. अरशद, मो. तैयब, तौसीफ खान, मो. लवी, अली कुरैशी, मो. रफीज, सैयद मारूफ आदि शामिल हुए।


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