बरेली। आलाहजरत मुजद्दिद इमाम अहमद रजा खान फाजिले बरेलवी साहब द्वारा स्थापित जामिया रजविया मंजर-ए-इस्लाम दरगाहे आलाहज़रत बरेली अहल-ए-सुन्नत व जमाअ़त की विश्व प्रसिद्ध एक केंद्रीय संस्था है इस संस्था ने अपनी निस्वार्थ सेवा से मजहब और मसलक के साथ देश और राष्ट्र का नाम भी दुनिया भर में प्रसिद्ध किया है।वर्तमान में यह महान संस्था और इसके विद्वान शिक्षक मुफ्ती मुहम्मद सलीम बरेलवी कई महीनों से लगातार युवा पीढ़ी को भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के विषय में सोशल मीडिया और यूट्यूब जैसे आधुनिक प्लेटफार्म के माध्यम से भरपूर अंदाज में अवगत करा रहे हैं।
इस संबंध में मीडिया प्रभारी नासिर कुरैशी ने कहा कि मरकजे अहल-ए-सुन्नत के प्रमुख हजरत सुब्हानी मियां साहब,सज्जादा नशीन हजरत मुफ्ती अहसन मियां साहब की देखरेख में आज मुफ्ती सलीम साहिब ने मंजर-ए-इस्लाम की ई-पाठशाला द्वारा भारत की स्वतन्त्रता में मुस्लिम योद्धाओं, क्रांतिकारियो, आलिमों,मदरसों और खानकाहों की अहम भुमिका पर भरपूर प्रकाश डाला। जिसमे समस्त छात्रों ने बढ़चढ़कर हिस्सा लिया।
मुफ्ती सलीम साहिब बरेलवी ने कहा कि आज 20 अगस्त का यह दिन भारत की स्वतन्त्रता के इतिहास मे एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है।आज ही के दिन 20 अगस्त 1861ई को स्वतन्त्रता संग्राम 1857 ई के असली हीरो अल्लामा फजले हक खैराबादी का देहान्त हुआ था।
अल्लामा फज़ले हक खैराबादी प्रथम स्वतंत्रता संग्राम 1857 के क्रान्तिकारी, तर्कशास्त्री व ऊर्दू अरबी, फारसी के प्रसिद्ध शायर थे। अल्लामा फजले हक के अनुयाई पुरे विश्व खास कर भारत और नेपाल मे बे शुमार हैं। नेपाली मुस्लिम छात्र भी उन से शिक्षा, दीक्षा प्राप्त करते थे। उनका जन्म 1797 ईऽ में उत्तर प्रदेश राज्य के ज़िला सीतापुर के शहर खैराबाद में हुआ था। उन्होंने धार्मिक रीति रिवाजों से शिक्षा प्राप्त की। शिक्षा सम्पन्न होने के पश्चात वह खैराबाद में ही अध्यापन कार्य करने लगे और फिर 1816 ईऽ में उन्नीस वर्ष की आयु में ब्रिटिश सरकार में नौकरी कर ली लेकिन एक ऐसा समय आया जब उन्होंने नौकरी नहीं करने का मन बना लिया और 1831 ईऽ में सरकारी नौकरी छोड़ दी। नौकरी छोड़ने के पश्चात वह दिल्ली के मुग़ल दरबार में कामकाज देखने लगे और शायरो की महफिलें से वाबस्ता होने लगे, 1857 के दौर में जब ईस्ट इंडिया कंपनी के ज़ुल्मो की हद हो गई तो हिन्दुस्तान के राजा-महाराजाओं व महारानियो तथा नवाबो व मौलवियों द्वारा अंग्रेजों को देश से बाहर निकलने का खाका तैयार करके एक ज़बरदस्त विद्रोह की योजना बनाई गयी। जिसका नेतृत्व क्रांति के महानायक मुग़ल सम्राट बहादुर शाह जफर द्वारा किया गया और रणनीतिकार अल्लामा फज़ले हक खैराबादी को बनाया गया जिसमे आप ने अहम भूमिका निभाई ।
अल्लामा फज़ले हक खैराबादी द्वारा अंग्रेजों के खिलाफ जेहाद का फतवा देकर मुस्लिम समुदाय को अंग्रेजों के खिलाफ विद्रोह में शामिल होने की अपील की गयी जिसका लाभ मुगल सम्राट बहादुर शाह ज़फर व अन्य विद्रोही नेताओं को मिला।
मौलाना द्वारा फतवा जारी करने के बाद से ही अंग्रेज़ो द्वारा उनकी तलाश शुरू हो गई। 1857 की क्रांति असफल हो जाने के बाद मौलाना बचते बचाते दिल्ली से खैराबाद तशरीफ ले आये। खैराबाद में अंग्रेजों को भनक लग गई और 30 जनवरी 1858 को उन्हें खैराबाद से गिरफ्तार कर लिया गया। लखनऊ में उन पर मुकदमा चलाया गया। इस मुकदमे की पैरवी उन्होंने खुद की। कोई वकील नियुक्त नहीं किया। मौलाना पर अग्रेंजों के खिलाफ जेहाद का फतवा जारी करने तथा लोगों को विद्रोह के लिए उकसाने के संगीन आरोप लगाये गये। मुकदमे की बहस के दौरान उन्होंने अपने जुर्म को कुबूल किया पर झूठ नहीं बोला और कहा, हॉ वह फतवा सही है, वह मेरा लिखा हुआ था और आज भी मैं अपने फतवे पर कायम हूं। आरोपो को कुबूल करने के पश्चात उन्हें काला पानी की सज़ा सुनाई गई और सारी जायदाद ज़ब्त करने का आदेश जारी किया गया। अंडमान निकोबार (सेलुलर जेल) में ही 20 अगस्त 1861 ईऽ में उनका इंतकाल हो गया।
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