उरई । बिजली की झिलमिलाती झालरों तथा डिजाइजर मोमबत्तियों नें कुम्हार के धन्धें पर ग्रहण लगा कर रख दिया। सस्तें और देशी विदेशी लाइटों के दौर के अब लेागों को कुम्हार के सीधें दीये में घी, तेल डालकर दीपावली मनाने की फुरसत ही नही है। सगुन के तौर पर अब लोग घरों के आंगन में दस बीस दीयें ही जलाते है। झालरों और मोमबत्तियों के कारण मिटटी के दीयों की बिक्री पर काफी फर्क पड़ा है। जों लोग मिटटी के दीपक खरीदते भी है। तो वह मोल भाव के बाद मेहनत तथा लागत का ही दाम देना चाहते है। इस कारण कुम्हारों की रोजी रोटी छीनती नजर आ रही है। दीयों की रस्म सिमट कर रह गई है।
बताते चलें कि आज कल बजली की झालरों तथा मोमबत्तियों ने कुम्हार की कारीगरी पर ग्रहण लगा दिया है। मिट्टी के दीयों पर लोग पैसा खर्च नही करना चाहते है। कुम्हारों की मानें तों उन्होने बताया है कि पूर्व में हर गांव में कुम्हारी गढ्ढा हुआ करता था जिससें कुम्हार लोग मिटटी लाकर अपने बरतन आदि बनाकर अपना भरण पोषण करतें थें लेकिन समय के बदलते कुम्हारी गढ्ढें भी बिलुप्त हो गयें है। साथ ही बिजली की झालरों मोमबत्तियों ने दीयों की बिक्री पर रोक लगा रखी है।
प्लास्टिक, फाइवर की बढती चाहत सें लोगों ने अब मिटटी के बनें खिलौनें सहित अन्य सामग्री को खरीदना बंद कर दिया है। बचा हुआ काम मोवाइल नें समाप्त कर दिया है। टिमटिमातें दीयों की रौशनी की कहानी को अब खत्म कर दिया है। आज कही हुई कहावत कबीर के दोहे द्वारा दरसाई गई है कि माटी कहे कुम्हार से तु क्यों रौदे मोयं एक दिन ऐसा आयेगा मै रोदूगीं तोए, का अर्थ ही बदल जायेगा। अगर देखा जाये तो यह कहावत सत्य होती नजर आ रही है। क्योकि आज की हालत यह है कि जिधर देखों उधर बिजली, प्लास्टिक का सामान नजर आ रहा है।


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